क्रोध प्रदर्शन प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक अधिकार है. स्त्री हो अथवा पुरुष, सभी को पूरा पूरा हक है की वह अपने क्रोध का प्रदर्शन करें. क्रोध प्रदर्शन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. ठीक वैसे ही जैसे एक सियार के हुआ हुआ करने पर दुसरे सियारों की भी हुआ हुआ करने की इच्छा. या फिर कौआ कान ले गया कहने पर कान को देखने के बजाये कौए के पीछे भागने का स्वाभाविक उपक्रम. [ सभी सियारों, सभी कौओ और सभी "कानो" से मेरी करबद्ध क्षमाप्रार्थना]
दोस्तों, कहा जाता है की प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसा वक़्त आता है जब उससे उसका कोई हक छीन लिया जाता है. किन्तु, हे मित्रगण, मेरा यह केवल विश्वास ही नहीं वरन, दावा है की मेरी ही तरह आप सबके जीवन में प्रतिदिन ऐसा वक़्त आता होगा जब आपसे आपका क्रोध करने का हक छीन लिया जाता होगा. यदि प्रति दिन न आता हो तो प्रति सप्ताह अवश्य आता होगा, ऐसा मेरा अटल विश्वास है. याद कीजिये, दोस्तों याद कीजिये. याद कीजिये वह वक़्त जब आपको गुस्सा आया. गुस्से से आपके दांत किटकिटाने लगे, मुट्ठियाँ भींच गयी, त्योरियां चढ़ गयी, मिजाज़ झनझना उठा और दिमाग सनसना उठा. आप गुस्से के चरम पर जा पहुंचे. आपके गुस्से का गुबार अब फूटा की तब फूटा. की अचानक...
अचानक आपको अपना गुस्सा पी जाना पड़ा. आपसे क्रोध प्रदर्शन का हक छीन लिया गया. आपको अपना गुस्सा नहीं उतारने दिया गया. अं वक़्त पर आपको अपने बड़प्पन का एहसास दिला दिया गया. आप अपने गुस्से का कड़वा घूँट पी गए. आँखें बंद कीजिये और याद कीजिये वह अहसास जो आपको अपना क्रोध प्रदर्शन न कर सकने की स्थिति में खुद को बेहद दयनीय पाकर हुआ. उफ़ !
लेकिन ऐसा क्यूँ होता है? याद कीजिये वह लम्हा जब आपका गुस्सा फूट कर बाहर निकलने वाला था. तभी अचानक किसी का हाथ आपके कंधे पर पड़ता है और आपके कानो में आवाज़ आती है - "क्या कीजियेगा... झेल लीजिये..."
क्या कीजियेगा... झेल लीजिये... यह चार शब्द इतने विरोधाभास से परिपूर्ण है की कानो में पड़ते ही ये आपके गुस्से को सांतवे आसमान पर ले जाते है लेकिन आपसे उसे व्यक्त करने का हक छीन लेते है. कानो में ये शब्द पड़े नहीं की आपको मजबूरन गुस्से को पीकर, दांत भींचकर रह जाना पड़ता है. इच्छा तो बहुत होती है की बता दे की क्या कर सकते है लेकिन मजबूरन झेल लेना पड़ता है. बेचारे आप!
अँ हाँ , देखिये मैं जानती हूँ की ब्लॉग पढ़ते पढ़ते अब आपके सर में दर्द शुरू हो गया है.
लेकिन, क्या कीजियेगा... झेल लीजिये...
Apne kaha aur humne jhel liya. Acchha likha.
ReplyDeletebahut shukriya Anuj ji, jhelne ke liye. Aasha hai aap aage bhi aise bhi jhelte rahenge :)
DeleteThis made me laugh and smile. Keep writing! :)
DeleteWelcome Ankita,
DeleteThank you very much!
ji, Sneha ji, ab frnd banaya hai to jhelna to padega hi
ReplyDelete:)
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